हिंदी दिवस के अवसर पर प्रस्तुत किया गया भाषण कुछ प्रसिद्ध दोहों के साथ इस प्रकार हो सकता है:
निज भाषा उन्नति अहै,
सब उन्नति को मूल
बिन निज भाषा-ज्ञान के,
मिटत न हिय को सूल।।
आदरणीय प्रधानाचार्य जी, सम्माननीय शिक्षकगण, और मेरे प्रिय साथियों,
आप सभी को हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं। हम सभी जानते हैं कि हिंदी हमारे देश की मातृभाषा है, और यह हमारे सांस्कृतिक धरोहर की महत्वपूर्ण पहचान है। हिंदी भाषा का इतिहास अत्यंत प्राचीन और गौरवशाली है। आज के इस विशेष अवसर पर, मैं कुछ प्रसिद्ध दोहों के माध्यम से हिंदी की महत्ता और सौंदर्य पर प्रकाश डालना चाहूंगी।
सबसे पहले, मैं संत कबीर दास जी के एक प्रसिद्ध दोहे से शुरुआत करना चाहूंगी:
सांच बराबर तप नहीं,
झूठ बराबर पाप।
जाके हिरदय सांच है,
ताके हिरदय आप।।
इस दोहे में कबीर दास जी सत्य की महत्ता बताते हैं। सत्य के समान कोई तप नहीं और झूठ के समान कोई पाप नहीं। हिंदी भाषा भी सत्य और सरलता का प्रतीक है। इसके माध्यम से हम अपनी भावनाओं को सहजता से व्यक्त कर सकते हैं।
अब रहीम दास जी का एक दोहा प्रस्तुत करती हूँ:
रहिमन धागा प्रेम का,
मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े,
जुड़े गांठ पड़ जाय।।
इस दोहे में रहीम दास जी प्रेम की नाजुकता को व्यक्त कर रहे हैं। जैसे प्रेम का धागा टूटने पर फिर से जुड़ता नहीं, वैसे ही हमारी मातृभाषा हिंदी के साथ भी हमारा प्रेम सच्चा और अटूट होना चाहिए। हमें इसे सम्मान देना चाहिए और इसे संजोकर रखना चाहिए।
अंत में, मैं तुलसीदास जी के एक दोहे के साथ अपने विचारों को समाप्त करना चाहूंगी:
धनु पर साधत सार,
भृकुटि बिलास बिलास।
तीर मरत रिपु बाल,
गयो सकल मलिनास।।
यह दोहा हमें यह सिखाता है कि सही दिशा में प्रयास करने से सभी समस्याएं दूर हो सकती हैं। हिंदी भाषा भी हमारे जीवन में उसी प्रकार एक मार्गदर्शक का काम करती है। इसके माध्यम से हम अपने विचारों को स्पष्टता से व्यक्त कर सकते हैं और समाज में अपनी पहचान बना सकते हैं।
साथियों, हिंदी दिवस हमें हमारी मातृभाषा के महत्व को याद दिलाता है। आइए, हम सभी इस दिन संकल्प लें कि हम हिंदी भाषा का आदर करेंगे, इसे सीखेंगे, और इसके प्रचार-प्रसार में योगदान देंगे।
हो हिन्दी का देश में,
पहले उचित प्रसार।
तब जाकर यह विश्व में,
पाएगी सत्कार।।
धन्यवाद।
यह भाषण हिंदी दिवस के अवसर पर प्रभावशाली और प्रेरणादायक हो सकता है।